Sunday, 21 June 2009

तेरे मन्दिर का हूँ दीपक..

तेर मन्दिर का हूँ दीपक,जल रहा...
आग जीवन में मैं भरकर चल रहा॥

क्या तू मेरे दर्द से अनजान है,
तेरी मेरी क्या नई पहचान है,
जो बिना पानी बताशा गल रहा...
आग जीवन में मैं भरकर चल रहा॥

मैं पथिक मधु-बांसुरी की बाट का,
एक धुन पे सौ तरह से नाचता,
आँख से जमुना का पानी ढल रहा...
आग जीवन में मैं भरकर चल रहा॥

एक झलक मुझको दिखा दे सांवरे,
तू मुझे ले चल कदम्ब की छांव रे,
ओ रे छलिया,क्यों मुझे तू छल रहा...
आग जीवन में मैं भरकर छल रहा॥

1 comment:

  1. बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
    ढेर सारी शुभकामनायें.

    संजय कुमार
    हरियाणा
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com
    Email- sanjay.kumar940@gmail.com

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