Wednesday, 24 March 2010

बारिशें ....

बारिशों में भीगना..
दिन की तपन,छिला हुआ सा मन,
खरोचों को बूंदों में सेंकना

बारिशों में घूमना
भागते ख्याल,विचारों का जाल
थके क़दमों से पता जैसे पूछना..

बारिशों में जागना
बीते दिन की पुकार,आती ज्यों मीलों पार
अंधियारी रातों में कानों से टटोलना..

बारिशों में रोना
ग़म को यूँ सहना,पीड़ में बहना
बूंदों में आंसुओं को छुपाना..

3 comments:

  1. बारिशों में भीगना..
    दिन की तपन,छिला हुआ सा मन,
    खरोचों को बूंदों में सेंकना


    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया........ बहुत सुंदर ....रचना....

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  2. धुल जाते हैं दर्द पुराने
    जब बादल घिर आते हैं
    टूट टूट दिल रह जाते हैं
    जब बदल घिर आते हैं

    बूँद बूँद बहता है दरिया
    सागर हिल हिल जाते हैं
    घने जंगलों में को धमकाते
    जब बादल घिर आते हैं


    खूबसूरत ... और कुछ भी नहीं ...

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