Sunday, 29 March 2009

२९-०३-२००९

कतरा-कतरा बीत रही है,इसको यूँ ही चलने दो..
सुलग रही है मद्धम महम,इसको यूँ ही जलने दो..
एक ज़िन्दगी ढलने लगी है,आहिस्ता सी टुकडों में,
रात का क्या है,छोटी सी है,इसको यूँ ही ढलने दो....

THE LAST TIME EVER by Gerald England

1 am: peering through blackness
2 am :i feel your heart pounding
3 am our fingers running up my spine
4 am my beard between your breasts
5 am sun rising over the pyramid
6 am ordering coffee and toast
7 am showering together
8 am locking both suitcases
9 am spreading marmalade on bacon
10 am clouds gather over the street
11 am the sound of steamboats on the river
noon black smoke from belching buses
1 pm gunshot heard in the desert
2 pm you tell me not to cry
3 pm at the Art Gallery not looking at portraits
4 pm eating ice-cream in the park
5 pm the drive to the airport
6 pm holding on to your passport
7 pm watching the DC10 climbing
8 pm falling asleep in the departure lounge
9 pm a taxi back to the city
10 pm the silence in the room
11 pm closing the curtain
midnight will last for ever.

Saturday, 28 March 2009

आज की रात....
नीली सी है,कुछ सीली सी है॥
आखों में छाई पनीली सी है
उसके सिरहाने खड़ी हो के सोचा
उसकी भी आँख गीली सी है॥

देखना जज़्बे-मुहब्बत का असर आज की रात

मेरे शाने पै1 है उस शोख़ का सर आज की रात


और क्या चाहिए अब ऐ दिले-मजरुह!2 तुझे

उसने देखा तो ब-अन्दाज़े दिगर आज की रात


नूर3-ही-नूर है जिस सिम्त4 उठाऊँ आँख

हुस्न-ही-हुस्न है, ताहद्दे-नज़र5 आज की रात


अल्लाह-अल्लाह वह पेशानिए-सीमीं का जमाल6

रह गई जम के सितारों की नज़र आज की रात


नग़्मा-ओ-मै का7 यह तूफ़ाने-तरब8 क्या कहिए!

घर मेरा बन गया ख़ैय्याम का घर आज की रात


अपनी रफ़अ़त पै जो नाज़ाँ9 हैं तो नाज़ाँ ही रहें

कह दो अंजुम से10 कि देखें न इधर आज की रात


उनके अल्ताफ़ का11 इतना ही फ़सूँ12 काफ़ी है

कम है पहले से बहुत दर्दे-जिगर आज की रात



1कन्धे पर; 2घायल हृदय; 3प्रकाश; 4तरफ़; 5 जहाँ तक नज़र जाती है; 6धवल मस्तक का निखार; 7संगीत और सुरा का; 8आनन्दमयी समाँ; 9ऊँचाई पर गर्वित; 10नक्षत्रों से; 11कृपाओं का; 12जादू

Wednesday, 25 March 2009

आह! ये बारानी रात,
मेंह,तूफ़ान,रक्से-साय्क़ात,
तूफानों के इस शोर में जाने...
कितनी दूर से सुन रहा हूँ तेरी बात...

Sunday, 22 March 2009

माय मोस्ट फेवरेट ग़ज़ल

झूटी सच्ची आस पे जीना, कब तक आखिर,आखिर कब तक.
मय की तरह खूनेदिल पीना ,कब तक आखिर,आखिर कब तक..

सोचा है अब पार उतेरेंगे,या टकराकर डूब मरेंगे,
तूफानों की ज़द में सफीना,कब तक आखिर,आखिर कब तक..

एक महीने के वादे पे साल गुज़ारा फिर भी न आये,
वादे का ये एक महिना,कब तक आखिर,आखिर कब तक..

सामने दुनिया भर के ग़म हैं,और इधर इक तनहा हम हैं,
सैकडों पत्थर इक आइना,कब तक आखिर,आखिर कब तक..

Thursday, 19 March 2009

क़तील शिफाई

प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं
कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं

बेस्र्ख़ी इस से बड़ी और भला क्या होगी
एक मु त से हमें उस ने सताया भी नहीं

रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने
आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं

सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने
वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं

तुम तो शायर हो ‘क़तील’ और वो इक आम सा शख्स़
उस ने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं

Monday, 16 March 2009

करोगे याद तो...

करोगे याद तो,हर बात याद आएगी..
गुज़रते वक्त की हर मौज ठहर जायेगी..

बरसता भीगता मौसम धुआं-धुआं होगा,
भटकते अब्र में चेहरा कोई बना होगा,
उदास राह कोई दास्तान सुनाएगी ..

Saturday, 14 March 2009

इंतज़ार

मैंने पूछा था एक सितारे से,इन्तहा भी इंतज़ार की है कोई ,
सुनके मेरे सवाल को शबनम,रात भर फूटफूट के रोई...

Thursday, 12 March 2009

इक सबब मरने का,इक तलब जीने की
चाँद पुखराज का,रात पश्मीने की

गुलज़ार साहब

Monday, 9 March 2009

चाँदनी रात में,एक बार तुम्हें देखा है,
फूल बरसाते हुए,प्यार छलकाते हुए, चाँदनी रात में ...

जागती थी जैसे साहिल पे कहीं,
लेके हाथों में कोई साजे-हसीं
एक रंगीन ग़ज़ल गाते हुए,फूल बरसाते हुए
प्यार छलकाते हुए ,चाँदनी रात में...

तूने चेहरे पे झुकाया चेहरा ,
मैंने हाथों से छुपाया चेहरा,
लाज से शर्म से घबराते हुए ,फूल बरसाते हुए,
प्यार छलकाते हुए,चाँदनी रात में...
एक बार तुम्हें देखा है....

Saturday, 7 March 2009

दुःख और सुख थे दोनों एक से
अधरों को कटु मधु समान था
तम प्रकाश थे एक एक से
स्वप्न जागरण भी समान था
सहसा एक सितारा बोला
यह न रहेगा बहुत दिनों तक
आप से गिला आपकी कसम
सोचते रहे ,कर सके न हम

उसकी क्या खता लादवां हैं ग़म
क्यों गिला करें चारागर से हम

ये नवाजिशें,और ये करम
ज़ब्ते-शौक से मर न जायें हम

खींचते रहे उम्रभर मुझे
इक तरफ़ खुदा इक तरफ़ सनम

ये अगर नहीं,यार की गली
चलते-चलते क्यों रुक गए कदम

Friday, 6 March 2009

आज बिछडे हैं कल का डर भी नहीं,
ज़िन्दगी इतनी मुख्तसर भी नहीं


ज़ख्म दीखते नहीं अभी लेकिन ,ठंडे होंगे तो दर्द निकलेगा
तैश उतरेगा वक्त का जब भी, चेहरा अन्दर से ज़र्द निकलेगा
आज बिछडे हैं ...

कहने वालों का कुछ नहीं जाता,सहने वाले कमल करते हैं,
कौन ढूंढें जवाब दर्दों के,लोग तो बस सवाल करते हैं
आज बिछडे हैं...

मैंने आज गुनगुनाया

क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!