Saturday, 7 March 2009

आप से गिला आपकी कसम
सोचते रहे ,कर सके न हम

उसकी क्या खता लादवां हैं ग़म
क्यों गिला करें चारागर से हम

ये नवाजिशें,और ये करम
ज़ब्ते-शौक से मर न जायें हम

खींचते रहे उम्रभर मुझे
इक तरफ़ खुदा इक तरफ़ सनम

ये अगर नहीं,यार की गली
चलते-चलते क्यों रुक गए कदम

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