Sunday, 22 March 2009

माय मोस्ट फेवरेट ग़ज़ल

झूटी सच्ची आस पे जीना, कब तक आखिर,आखिर कब तक.
मय की तरह खूनेदिल पीना ,कब तक आखिर,आखिर कब तक..

सोचा है अब पार उतेरेंगे,या टकराकर डूब मरेंगे,
तूफानों की ज़द में सफीना,कब तक आखिर,आखिर कब तक..

एक महीने के वादे पे साल गुज़ारा फिर भी न आये,
वादे का ये एक महिना,कब तक आखिर,आखिर कब तक..

सामने दुनिया भर के ग़म हैं,और इधर इक तनहा हम हैं,
सैकडों पत्थर इक आइना,कब तक आखिर,आखिर कब तक..

No comments:

Post a Comment