Sunday, 29 March 2009

२९-०३-२००९

कतरा-कतरा बीत रही है,इसको यूँ ही चलने दो..
सुलग रही है मद्धम महम,इसको यूँ ही जलने दो..
एक ज़िन्दगी ढलने लगी है,आहिस्ता सी टुकडों में,
रात का क्या है,छोटी सी है,इसको यूँ ही ढलने दो....

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