Monday, 20 April 2009

इंतज़ार

इंतज़ार...कोई इन्तेहा नही इसकी...
पल भर का हो..या हो उम्र भर का...

हम भूल गए

हम भूल गए रे हर बात,मगर तेरा प्यार नहीं भूले
क्या क्या हुआ दिल के साथ,मगर तेरा प्यार नही भूले...

Friday, 17 April 2009

अशोक वाजपई

तुम चले जाओगे

पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे

जैसे रह जाती है

पहली बारिश के बाद

हवा में धरती की सोंधी-सी गंध

भोर के उजास में

तुम चले जाओगे

पर मेरे पास

रह जाएगी

प्रार्थना की तरह पवित्र

और अदम्य

तुम्हारी उपस्थिति,

छंद की तरह गूँजता

तुम्हारे पास होने का अहसास|॥

तुम चले जाओगे

और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे|



विदा

यह विदा का नाम ही होता बुरा है...
डूबने लगती तबियत...

Thursday, 9 April 2009

ज़िन्दगी..

ज़िन्दगी क्या है इस एक याद के सिवा...
सोच लें और उदास हो जायें.

Wednesday, 8 April 2009

in April..


In April, in April,
My one love came along,
And I ran the slope of my high hill
To follow a thread of song.

His eyes were hard as porphyry
With looking on cruel lands;
His voice went slipping over me
Like terrible silver hands.

Together we trod the secret lane
And walked the muttering town.
I wore my heart like a wet, red stain
On the breast of a velvet gown.

Saturday, 4 April 2009

आपकी याद आती रही रात भर

आपकी याद आती रही रात भर
रात भर चश्‍मे-नम मुस्‍कुराती रही
रात भर दर्द की शम्‍मां जलती रही
ग़म की लौ थरथराती रही रात भर
बांसुरी की सुरीली सुहानी सदा
याद बन बनके आती रही रात भर
याद के चांद दिल में उतरते रहे
चांदनी जगमगाती रही रात भर
कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा
कोई आवाज़ आती रही रात भर ।।

मख़दूम

रात भर दीदा-ए-नमनाक* में लहराते रहे । ( भीगी आंखों )

सांस की तरह से आप आते रहे, जाते रहे

ख़ुश थे हम अपनी तमन्‍नाओं का ख्‍़वाब आयेगा

अपना अरमान बर-अफ़गंदा-नक़ाब* आयेगा । *बिना परदा किये ।

(नज़रें नीची किये शरमाए हुए आएगा

काकुलें* चेहरे पे बिखराए हुए आएगा ) *जुल्‍फ़

आ गयी थी दिल-ए-मुज़्तर में शिकेबाई-सी* । *बेचैन दिल को चैन

बज रही थी मेरे ग़मख़ाने में शहनाई-सी

शब के जागे हुए तारों को भी नींद आने लगी

आपके आने की इक आस थी, अब जाने लगी

सुबह ने सेज से उठते हुए ली अंगड़ाई

ओ सबा तू भी जो आई तो अकेली आई

ओ सबा तू भी जो आई तो अकेली आई ।।

Thursday, 2 April 2009

दिनचर्या

लो दिन बीता,लो रात गई...

सूरज ढलकर पच्छिम पंहुचा ,
डूबा,संध्या आई-छाई
सौ संध्या सी वह संध्या थी...
क्यों उठते उठते सोचा था...
दिन में होगी कुछ बात नई...
लो दिन बीता,लो रात गई...

Wednesday, 1 April 2009

....

किसी के इतने पास न जा
के दूर जाना खौफ़ बन जाये
एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये

किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे बैठे आन्ख नम हो जाये
उसे गर मिले एक दर्द
इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये

किसी को इतना याद न कर
कि जहा देखो वोही नज़र आये
राह देख देख कर कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये