रात भर दीदा-ए-नमनाक* में लहराते रहे । ( भीगी आंखों )
सांस की तरह से आप आते रहे, जाते रहे
ख़ुश थे हम अपनी तमन्नाओं का ख़्वाब आयेगा
अपना अरमान बर-अफ़गंदा-नक़ाब* आयेगा । *बिना परदा किये ।
(नज़रें नीची किये शरमाए हुए आएगा
काकुलें* चेहरे पे बिखराए हुए आएगा ) *जुल्फ़
आ गयी थी दिल-ए-मुज़्तर में शिकेबाई-सी* । *बेचैन दिल को चैन
बज रही थी मेरे ग़मख़ाने में शहनाई-सी
शब के जागे हुए तारों को भी नींद आने लगी
आपके आने की इक आस थी, अब जाने लगी
सुबह ने सेज से उठते हुए ली अंगड़ाई
ओ सबा तू भी जो आई तो अकेली आई
ओ सबा तू भी जो आई तो अकेली आई ।।
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