Sunday, 5 December 2010

:(

बन के जोगनिया आई थी तेरे द्वार,
ओ मोरे सैयां,मोरे सरकार..
कैसी लागी दिल की ये,कैसा है ये दाग..
ऐसी धूनी अतीत की,जब देखूं तब आग..
मैं तो जोगनिया..तेरी जोगनिया मोरे सरकार...

Tuesday, 30 November 2010

कोई गिला नहीं...

वक़्त-ए-आखिर उम्रभर के सब फ़साने कह गई...
वो पशेमानी तेरी और उसपे हैरानी मेरी...
अपनी अपनी मंजिल-ए-मक़सूद पे ले जाएगी॥
दोस्तों को उनकी अक्ल और मुझको नादानी मेरी...

Thursday, 18 November 2010

समवन समेव्हेर

मेरी ज़िन्दगी किसी और की,तेरे नाम का कोई और है.
सरे-आइना मेरा अक्स है,पसे-आइना कोई और है....

मेरी धडकनों में है चाप-सी,ये जुदाई भी है मिलाप सी...
मुझे क्या पता,मेरे दिल बता,मेरे साथ क्या कोई और है....

न गए दिनों को खबर मेरी,न शरीके-हाल नज़र तेरी...
तेरे देस में,मेरे भेस में,कोई और था-कोई और है...

वो मेरी तरफ निगरान रहे,मेरा ध्यान जाने कहाँ रहे...
मेरी आँख में कई सूरतें,तुझे देखता कोई और है....

Monday, 15 November 2010

फिल्म : खूबसूरत.

बरसे क्यों बरसात...आज रात...
मेरे पिया नहीं मेरे पास,एक साया चले आस-पास,
आज रात....

Wednesday, 3 November 2010

अब अक्सर..

अब अक्सर चुप-चुप से रहे है,
यूँ भी कबहू लब खोले है...
पहले फ़िराक को देखा होता,
अब तो बहुत कम बोले हैं...

दिन में हमको देखने वालों
अपने अपने हैं औक़ात
जाओ न तुम इन खुश्क आखों पे,
हम रातों को रो ले हैं..।

फितरत मेरी इश्को-मुहब्बत,
किस्मत मेरी तन्हाई...
कहने कि नौबत ही न आई
हम भी कसू के हो ले हैं...

दिल का फ़साना सुनने वालों,
आखिरे शब् आराम करो॥
कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे,
अब तो ज़रा हम सो ले हैं....

हम लोग तो अब पराये से हैं,
कुछ तो बताओ हाले-फ़िराक,
अब तो तुम्ही को प्यार करे हैं
अब तो तुम्ही से बोले हैं...

दिन गुज़र गया...

दिन गुज़र गया,ऐतबार में...
रात कट गई..इंतज़ार में.

वो मज़ा कहाँ,वसले-यार में...
लुत्फ़ जो मिला..इंतंजार में.

उससे क्या कहें,कितने ग़म सहे...
हमने बेवफा..तेरे प्यार में.

फिकरे आशियाँ,हर खिज़ां में की...
आशियाँ जला..इस बहार में.

किस तरह ये ग़म,भूल जाएँ हम...
वो जुदा हुआ..इस कगार में.

Monday, 1 November 2010

aakhir...

मैंने तुम्हे भुलाना शुरू कर दिया आखिर..

निजात पाई उन चीज़ों से,जिनसे जुडी थी यादें तुम्हारी..
जाने दिया उन लम्हों को जिन्हें रोके रखा अब तक..
न कुछ हासिल अब उसने,न कोई जुड़ाव रखा तुमने,
तो अब क्या करूँ इनका,ये रुलाती है मुझे..
मैंने इन्हें मिटाना शुरू कर दिया आखिर...

उन चादरों को जला दिया जिनमे थी महक तुम्हारी..
उन कपड़ो को फाड़ डाला जो दिलाते थे तुम्हारी याद..
वो तस्वीरे जो अब तक मेरा आश्रय थीं..
वो बर्तन जिन्हें तुमने छुआ था कभी..
मैंने उन्हें हटाना शुरू कर दिया आखिर...

मगर अब ये बैठी सोचती हूँ..
चीज़ों से छुटकारा पाया जा सकता है
मैं अपने इस जिस्म का क्या करूँ..
एक ही रास्ता मुझे नज़र आता है..
और वो किस कदर कठिन है,क्या कहूँ..
मैंने खोजना शुरू किया मरने का बहाना आखिर..