अब अक्सर चुप-चुप से रहे है,
यूँ भी कबहू लब खोले है...
पहले फ़िराक को देखा होता,
अब तो बहुत कम बोले हैं...
दिन में हमको देखने वालों
अपने अपने हैं औक़ात
जाओ न तुम इन खुश्क आखों पे,
हम रातों को रो ले हैं..।
फितरत मेरी इश्को-मुहब्बत,
किस्मत मेरी तन्हाई...
कहने कि नौबत ही न आई
हम भी कसू के हो ले हैं...
दिल का फ़साना सुनने वालों,
आखिरे शब् आराम करो॥
कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे,
अब तो ज़रा हम सो ले हैं....
हम लोग तो अब पराये से हैं,
कुछ तो बताओ हाले-फ़िराक,
अब तो तुम्ही को प्यार करे हैं
अब तो तुम्ही से बोले हैं...
No comments:
Post a Comment