Monday, 1 November 2010

aakhir...

मैंने तुम्हे भुलाना शुरू कर दिया आखिर..

निजात पाई उन चीज़ों से,जिनसे जुडी थी यादें तुम्हारी..
जाने दिया उन लम्हों को जिन्हें रोके रखा अब तक..
न कुछ हासिल अब उसने,न कोई जुड़ाव रखा तुमने,
तो अब क्या करूँ इनका,ये रुलाती है मुझे..
मैंने इन्हें मिटाना शुरू कर दिया आखिर...

उन चादरों को जला दिया जिनमे थी महक तुम्हारी..
उन कपड़ो को फाड़ डाला जो दिलाते थे तुम्हारी याद..
वो तस्वीरे जो अब तक मेरा आश्रय थीं..
वो बर्तन जिन्हें तुमने छुआ था कभी..
मैंने उन्हें हटाना शुरू कर दिया आखिर...

मगर अब ये बैठी सोचती हूँ..
चीज़ों से छुटकारा पाया जा सकता है
मैं अपने इस जिस्म का क्या करूँ..
एक ही रास्ता मुझे नज़र आता है..
और वो किस कदर कठिन है,क्या कहूँ..
मैंने खोजना शुरू किया मरने का बहाना आखिर..

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