Monday, 9 March 2009

चाँदनी रात में,एक बार तुम्हें देखा है,
फूल बरसाते हुए,प्यार छलकाते हुए, चाँदनी रात में ...

जागती थी जैसे साहिल पे कहीं,
लेके हाथों में कोई साजे-हसीं
एक रंगीन ग़ज़ल गाते हुए,फूल बरसाते हुए
प्यार छलकाते हुए ,चाँदनी रात में...

तूने चेहरे पे झुकाया चेहरा ,
मैंने हाथों से छुपाया चेहरा,
लाज से शर्म से घबराते हुए ,फूल बरसाते हुए,
प्यार छलकाते हुए,चाँदनी रात में...
एक बार तुम्हें देखा है....

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर ...,खूब लिखा है..,
    तूने चेहरे पे झुकाया चेहरा ,
    मैंने हाथों से छुपाया चेहरा,
    लाज से शर्म से घबराते हुए ,फूल बरसाते हुए,
    प्यार छलकाते हुए,चाँदनी रात में...
    एक बार तुम्हें देखा है.... वाह.. वाह.. मेरी शुभ कामनाए ..आपके भविष्य के लिए

    मेरे हाथों में जब इश्क-ओ-जुनूं का साज होता है
    जमीं क्या आसमां तक गोश बरआवाज़ होता है ......मक

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